व्यंजन: परिभाषा, भेद और महत्वपूर्ण नियम

व्यंजन की परिभाषा

हिंदी व्याकरण में वे ध्वनियाँ जिनके उच्चारण में वायु मार्ग में किसी न किसी अवरोध का अनुभव होता है, उन्हें व्यंजन कहते हैं। व्यंजन का स्वतंत्र रूप से उच्चारण नहीं होता, इसके लिए किसी स्वर का साथ आवश्यक होता है। उदाहरण के लिए ‘क’, ‘ख’, ‘ग’, ‘च’ आदि व्यंजन हैं।

व्यंजन के भेद

व्यंजन के विभिन्न भेद उनके उच्चारण स्थान और ध्वनि गुण के आधार पर होते हैं।

  1. स्थान के आधार पर भेद
    • कंठ्य व्यंजन: जैसे क, ख, ग, घ
    • तालव्य व्यंजन: जैसे च, छ, ज, झ
    • मूर्धन्य व्यंजन: जैसे ट, ठ, ड, ढ
    • दंत्य व्यंजन: जैसे त, थ, द, ध
    • ओष्ठ्य व्यंजन: जैसे प, फ, ब, भ
  2. ध्वनि के आधार पर भेद
    • महाप्राण व्यंजन: जैसे ख, छ, ठ, थ, फ
    • अल्पप्राण व्यंजन: जैसे क, च, ट, त, प
    • नादानुसार भेद: घोष (जैसे ग, ज) और अघोष (जैसे क, च)

व्यंजन का उदाहरण

प्रकारउदाहरण
कंठ्यक, ख, ग, घ, ङ
तालव्यच, छ, ज, झ, ञ
मूर्धन्यट, ठ, ड, ढ, ण
दंत्यत, थ, द, ध, न
ओष्ठ्यप, फ, ब, भ, म

व्यंजन की उपयोगिता

  1. शब्द निर्माण में: व्यंजन ध्वनियों का उपयोग शब्दों को बनाता है, जो भाषा को संवाद का रूप देता है।
  2. ध्वनि विविधता: व्यंजनों के विभिन्न ध्वनि संयोजन से उच्चारण की विविधता मिलती है, जिससे भाषा आकर्षक बनती है।
  3. व्याकरण में विशेष स्थान: व्यंजनों का ज्ञान, हिंदी व्याकरण का आधारभूत तत्व है।
 

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